कुरुक्षेत्र युद्ध
कुरुक्षेत्र युद्ध | |||||||
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महाभारत महाकाव्यक हस्तलिखित पाण्डुलिपि, चित्र सहित | |||||||
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युद्धरत | |||||||
पाण्डवसभक सेनापति धृष्टद्युम्न | कौरवक सेनापति भीष्म | ||||||
उच्चाधिकारी तथा नेतासभ | |||||||
धृष्टद्युम्न | भीष्म,द्रोण,कर्ण, शल्य,अश्वत्थामा | ||||||
शक्ति | |||||||
७ अक्षौहिणी १५,३०,९०० सैनिक |
११ अक्षौहिणी २४,०५,७०० सैनिक | ||||||
धनजनक विनास | |||||||
सभ योद्धासभमे सँ केवल ८ ज्ञात वीर ही शेष-पाँचु पाण्डव, कृष्ण, सात्यकि, युयुत्सु |
सभ योद्धासभमे सँ केवल ३ ज्ञात वीर ही शेष -अश्वत्थामा, कृपाचार्य, कृतवर्मा |
कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवसभ आ पाण्डवसभक मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासनक प्राप्ति के लेल लडल गेल छल। महाभारत के अनुसार ई युद्धमे भारतक प्रायः सभ जनपदसभ भाग लेनए छल। महाभारत आ अन्य वैदिक साहित्यसभ के अनुसार ई प्राचीन भारत मे वैदिक काल के इतिहासक सभसँ बडका युद्ध छल। [१] ई युद्धमे लाखो क्षत्रिय योद्धा मारल गेल जेकर परिणामस्वरूप वैदिक संस्कृति तथा सभ्यताक पतन भऽ गेल छल। ई युद्धमे सम्पूर्ण भारतवर्ष के राजासभक अतिरिक्त बहुतसँ अन्य देशसभक क्षत्रिय वीरसभ सेहो भाग लेनए छल आ सभ गोटेक वीर गति प्राप्त भऽ गेल। [२] ई युद्ध के परिणामस्वरुप भारतमे ज्ञान आ विज्ञान दुनु के साथ-साथ वीर क्षत्रीसभक अभाव भऽ गेल। एक प्रकारसँ वैदिक संस्कृति आ सभ्यता जे विकास के चरम पर छल ओकर एकाएक विनाश भऽ गेल। प्राचीन भारतक स्वर्णिम वैदिक सभ्यता ई युद्धक समाप्ति के साथ ही समाप्त भऽ गेल। ई महान युद्धक ओ समय के महान ऋषि आ दार्शनिक भगवान वेदव्यास अपन महाकाव्य महाभारत मे वर्णन केलक, जेकरा सहस्राब्दिसभ धरि सम्पूर्ण भारतवर्षमे गावि एवं सुनि के याद रखल गेल। [३]
महाभारत मे मुख्यतः चन्द्रवंशीसभक दुई परिवार कौरव आ पाण्डव के बीच भेल युद्धक वृत्तान्त अछि। १०० कौरवसभ आ पाँच पाण्डवसभक बीच कुरु साम्राज्यक भूमि के लेल जे संघर्ष चलल ओहिसँ अन्तत: महाभारत युद्धक सृजन भेल। उक्त युद्धक हरियाणा मे स्थित कुरुक्षेत्र के आसपास भेल मानल जाइत अछि। ई युद्धमे पाण्डव विजयी भेल छल। [१] महाभारत मे ई युद्ध के धर्मयुद्ध कहल गेल अछि, किया कि ई सत्य आ न्याय के लेल लडल जाए वाला युद्ध छल। [२] महाभारत कालसँ जुडल अनेकौं अवशेष दिल्ली मे पुराना किल्ला मे मिलैत अछि। पुराना किला के पाण्डवसभक किल्ला सेहो कहल जाइत अछि।[४] कुरुक्षेत्र मे सेहो भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा महाभारत काल के वाण आ भाला प्राप्त भेल अछि।[५] गुजरात के पश्चिमी तट पर समुद्रमे डूबल ७०००-३५०० वर्ष पुरान शहर खोजल गेल अछि[६], जेकरा महाभारतमे वर्णित द्वारका के सन्दर्भसभसँ जोडल गेल[७], एकर बाहेक बरनावा मे सेहो लाक्षागृह के अवशेष मिलैत अछि[८], ई सभ प्रमाण महाभारतक वास्तविकता के सिद्ध करैत अछि।
पृष्ठभूमि
[सम्पादन करी]महाभारत युद्ध होए के मुख्य कारण कौरवसभक उच्च महत्वाकाङ्क्षासभ आ धृतराष्ट्रक पुत्र मोह छल। कौरव आ पाण्डव आपसमे सहोदर भाई छल। वेदव्यास जी सँ नियोग के द्वारा विचित्रवीर्यक भार्या अम्बिका के गर्भसँ धृतराष्ट्र आ अम्बालिका के गर्भसँ पाण्डु उत्पन्न भेल। धृतराष्ट्र गान्धारी के गर्भसँ एक सय पुत्रसभक जन्म देलक, ओहीमे दुर्योधन सभसँ पैग छल। पाण्डु के युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव आदि पाँच पुत्र भेल| धृतराष्ट्र जन्मसँ ही नेत्रहीन छल अतः हुनकर जगह पर पाण्डु के राज देल गेल जाहिसँ धृतराष्ट्र के सदा पाण्डु आ ओकर पुत्रसभसँ द्वेष रहै लगल। ई द्वेष दुर्योधन के रूप मे फलीभूत भेल आ शकुनि ई आगि मे घी के कार्य केलक। शकुनि के कहै पर दुर्योधन बचपन सँ लके लाक्षागृह धरि अनेकौं षडयन्त्र केलक। मुद्दा प्रत्येक बेर ओ विफल रहल। युवावस्थामे आवय पर जखन युधिष्ठिर के युवराज बना देल गेल तँ ओ हुनका लाक्षागृह भेजवा के मारै के कोशिश केलक मुद्दा पाण्डव बचि गेल। पाण्डवसभक अनुपस्थितिमे धृतराष्ट्र दुर्योधन के युवराज बना देलक मुदा जखन पाण्डवसभ फेरसँ आवि अपन राज्य वापिस माङ्गलक् तँ हुनका राज्य के नाम पर खण्डहर रुपी खाण्डव वन देल गेल। धृतराष्ट्र के अनुरोध पर गृहयुद्ध के संकट सँ बचेवाक लेल युधिष्ठिर ई प्रस्ताव सेहो स्वीकार करि लेलक। पाण्डवसभ श्रीकृष्ण के सहायतासँ इन्द्र के अमारावती पुरी जतेक भव्य नगरी इन्द्रप्रस्थ के निर्माण केलक। पाण्डवसभ विश्वविजय करि के प्रचुर मात्रामे रत्न एवं धन एकत्रित केलक आ राजसूय यज्ञ केलक। दुर्योधन पाण्डवसभ के उन्नति देखि नै पाओलक आ शकुनि के सहयोगसँ द्यूतमे छ्लसँ युधिष्ठिरसँ ओकर सारा राज्य जीत लेलक आ कुरुराज्य सभामे द्रौपदी के निर्वस्त्र करै के प्रयास करि ओकरा अपमानित केलक। सम्भवतः एही दिन महाभारत के युद्ध के बीज पडि गेल छल। अन्ततः पुनः द्यूतमे हारि के पाण्डवसभक १२ वर्ष के ज्ञातवास आ १ वर्षक अज्ञातवास स्वीकार केनाए पडल। मुद्दा जखन ई शर्त पूरा करै पर सेहो कौरवसभ पाण्डवसभक हुनकर राज्य दैऽ सँ मना करि देलक। तँ पाण्डवसभक युद्ध करै के लेल बाधित होए पडल, मुद्दा श्रीकृष्ण युद्ध रोकवाक हर-तरहके सम्भव प्रयास करै के सुझाव देलक।
तखन श्रीकृष्ण पाण्डवसभक तरफसँ कुरुराज्य सभामे शान्तिदूत बनि के गेल आ ओतय श्रीकृष्ण दुर्योधनसँ पाण्डवसभक केवल पाँच गाम दऽ के युद्ध टालै के प्रस्ताव रखलक्। मुद्दा जखन दुर्योधन पाण्डवसभक सुईयाँ के नोङ्क जतेक सेहो भूमि दैऽ सँ मना करि देलक तँ अन्ततः युधिष्ठिर के युद्ध करि के लेल बाधित होए पडल। ई प्रकार कौरवसभ ११ अक्षौहिणी तथा पाण्डवसभ ७ अक्षौहिणी सेना एकत्रित करि लेलक। युद्धक तैयारी पूर्ण करै के बाद कौरव आ पाण्डव दुनु दल कुरुक्षेत्र पहुँचल, जतय ई भयङ्कर युद्ध लडल गेल [९] कुरुक्षेत्र के ओ भयानक आ घमासान संहारक युद्धक अनुमान महाभारत के भीष्म पर्वमे देल एक श्लोक [१०] सँ लगाएल जा सकैत अछि कि
“ | न पुत्रः पितरं जज्ञे पिता वा पुत्रमौरसम्।
भ्राता भ्रातरं तत्र स्वस्रीयं न च मातुलः॥ |
„ |
“ | अर्थात् : ओ युद्धमे न पुत्र पिता के, न पिता पुत्र के, न भाई-भाई को, न मामा भाञ्जा के, न मित्र मित्र के पहिचानैत छल' | „ |
ऐतिहासिकता
[सम्पादन करी]- महाभारत युद्धक साधारणतया वैदिक युग मे लगभग ९५० ईसा पूर्व के समय के मानल जाइत अछि।[११] अधिकतर पश्चिमी विद्वान् एकरा १००० ईसा पूर्वसँ १५०० ईसा पूर्व मनैत अछि विद्वानसभ एकर तिथि निर्धारित करै के लेल एहीमे वर्णित सूर्य ग्रहण आ चन्द्र ग्रहणसभक बारेमे अध्ययन कएल अछि आ एकरा ३१हम शताब्दी ईसा पूर्वक मनैत अछि, मुद्दा मतभेद अखनो भी जारी अछि। एकर अनेकौं भारतीय आ पश्चिमी विद्वानसभद्वारा भिन्न-भिन्न तिथिसभ निर्धारित कएल गेल अछि-
- विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ वराहमिहिर के अनुसार महाभारत युद्ध २४४९ ईसा पूर्व भेल छल। [१२]
- विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट के अनुसार महाभारत युद्ध १८ फरवरी ३१०२ ईसा पूर्वमे भेल छल। [१३]
- चालुक्य राजवंश के सभसँ महान सम्राट पुलकेसि २ के ५हम शताब्दी के ऐहोल अभिलेखमे ई बताएल गेल अछि कि भारत युद्धक भेल ३,७३५ वर्ष बीत गेल अछि, ई दृष्टिसँ महाभारतक युद्ध ३१०० ईसा पूर्व लडल गेल होएत। [१४]
- पुराणसभक मानल जाए तँ ई युद्ध १९०० ईसा पूर्व भेल छल, पुराणसभ मे देल गेल विभिन्न राज वंशावलीसभक यदि चन्द्रगुप्त मौर्यसँ मिला के देखल जाए तँ १९०० ईसा पूर्व के तिथि निकलैत अछि, मुद्दा किछ विद्वानसभक अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य १५०० ईसा पूर्व मे भेल छल, यदि ई मानल जाए तँ ३१०० ईसा पूर्व के तिथि निकलैत अछि किया कि यूनान के राजदूत मेगस्थनीज अपन पुस्तक "इन्डिका" मे जे चन्द्रगुप्तक उल्लेख कएल गेल अछि ओ गुप्त वंशक राजा चन्द्रगुप्त सेहो भऽ सकैत अछि। [१५]
- अधिकतर पश्चिमी यूरोपीय विद्वानसभ जेना मायकल भिटजल के अनुसार भारत युद्ध १२०० ईसा पूर्वमे भेल छल, जे एकर भारतमे लौह युग (१२००-८०० ईसा पूर्व) सँ जोडि देखैत अछि। [१६]
- किछ पश्चिमी यूरोपीय विद्वानसभ जेना पी वी होले महाभारतमे वर्णित ग्रह-नक्षत्रसभक आकाशीय स्थितिसभक अध्ययन करै के बाद एकरा १३ नवम्बर ३१४३ ईसा पूर्व मे आरम्भ भेल मनैत अछि। [१७]
- अधिकतर भारतीय विद्वान् जैसे बी ऐन अचर, एन एस राजाराम, के. सदानन्द, सुभाष काक ग्रह-नक्षत्रसभक आकाशीय गणनासभक आधार पर एकरा ३०६७ ईसा पूर्व मे आरम्भ भेल मनैत अछि। [१८]
- भारतीय विद्वान् पी वी वारटक महाभारत मे वर्णित ग्रह-नक्षत्रसभक आकाशीय गणनासभक आधार पर एकरा १६ अक्तूबर ५५६१ ईसा पूर्व मे आरम्भ भेल मनैत अछि। [१७][१९]
- किछ विद्वानसभ जेना पी वी वारटक [१७][१९] के अनुसार यूनान के राजदूत मेगस्थनीजअपन पुस्तक "इन्डिका" मे अपन भारत यात्राक समय जमुना (यमुना) के तट पर बैसल मेथोरा (मथुरा) राज्य मे शूरसेनीसभ सँ मिलै के वर्णन करैत अछि, मेगस्थनीज ई बतावैत अछि कि ई शूरसेनी कोनो हेराकल्स नामक देवताक पुजा करैत छल आ ई हेराकल्स काफी चमत्कारी पुरुष होइत छल तथा चन्द्रगुप्त सँ १३८ पीढिसभ पहिने छल। हेराकल्स अनेकौं विवाह केलक आ अनेकौं पुत्र उत्पन्न कएल। मुद्दा ओकर सभ पुत्र आपसमे युद्ध करि के मारल गेल। एतय ई साफ अछि कि ई हेराकल्स श्रीकृष्ण ही छल, विद्वान् एकरा हरिकृष्ण कहि के श्रीकृष्ण सँ जोडैत अछि किया कि श्रीकृष्ण चन्द्रगुप्त सँ १३८ पीढि पहिने छल तँ यदि एक पीढि के २०-३० वर्ष दै तँ ३१००-५६०० ईसा पूर्व श्रीकृष्ण के जन्म समय निकलैत अछि अतः ई हिसाब सँ ५६००-३१०० ईसा पूर्व के समय महाभारतक युद्ध भेल होएत।
- मोहनजोददो मे १९२७ मे म्याके द्वारा कएल गेल पुरातात्विक उत्खननमे मिलल एक पत्थरक ट्याब्लेट मे एक छोटका बालक के दुई गाछ के खीचैत देखाएल गेल अछि आ ओ गाछ सँ दुई पुरुषसभक निकलि के ओ बालक के प्रणाम करैत सेहो देखाएल गेल अछि, ई दृश्य भगवान श्रीकृष्णक बचपन के यमलार्जुन-लीला सँ समानता देखाएल गेल अछि, अतः अनेकौं विद्वान् ई मनैत अछि कि मोहनजोददो सभ्यता के लोग महाभारत के कथासभ सँ परिचित छल। एही कारण सेहो ई युद्ध के ३००० ईसा पूर्व मानल गेल अछि। [२०]
श्रीकृष्णद्वारा शान्तिक अन्तिम प्रयास[२१]
[सम्पादन करी]१२ वर्ष के ज्ञातवास आ १ वर्ष के अज्ञातवासक शर्त पूरा करै पर सेहो जखन कौरवसभ पाण्डवसभ के हुनकर राज्य दै सँ मना करि देलक तँ पाण्डवसभ के युद्ध करै के लेल बाधित होए पडल। मुद्दा श्रीकृष्ण कहलैन् कि ई युद्ध सम्पूर्ण विश्व सभ्यता के विनाशक कारण बनि सकैत अछि अतः ओ युद्ध रोकै के सभ सम्भव प्रयास करै के सुझाव देलक। श्रीकृष्ण कहलक् कि दुर्योधन को एक अन्तिम अवसर अवश्य देवाक चाहि, एही लेल श्रीकृष्ण पाण्डवसभक तरफसँ कुरुराज्य सभामे शान्तिदूत बनि के गेल आ दुर्योधन सँ पाण्डवसभक आगा केवल पाँच गाम दै के युद्ध टालए के प्रस्ताव रखलक्।
युद्धक तैयारीसभ आ कुरुक्षेत्रक दिशामे प्रस्थान[२२]
[सम्पादन करी]जखन ई निश्चित भेल गेल अछि युद्ध तँ होएत ही, तँ दुनु पक्षसभ युद्ध के लेल तैयारीसभ शुरू करि देलक। दुर्योधन पिछला १३ वर्षसभसँ ही युद्धक तैयारी करि रहल छल, ओ बलराम जी सँ गदा युद्धक शिक्षा प्राप्त केलक तथा कठिन परिश्रम आ अभ्यास सँ गदा युद्ध करवाक मे भीम सँ सेहो बढियाँ भऽ गेल। शकुनि ई वर्षसभमे के विश्व के अधिकतर जनपदसभ के अपन तरफ करि लेलक। दुर्योधन कर्ण के अपन सेनाक सेनापति बनेवाक चाहैत छल मुद्दा शकुनि के समझावे पर दुर्योधन पितामह भीष्म के अपन सेनाक सेनापति बनौलक्, जेकर कारण भारत आ विश्व के अनेकौं जनपद दुर्योधन के पक्ष मे भऽ गेल। पाण्डवसभक तरफ केवल ओहीसभ जनपद छल जे धर्म आ श्रीकृष्ण के पक्ष मे छल। महाभारत के अनुसार महाभारत कालमे कुरुराज्य विश्वक सभसँ बड आ शक्तिशाली जनपद छल। विश्व के सभ जनपद कुरुराज्य सँ कखनो युद्ध करै के भूल नै करैत छल एवं सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनौने रखैत छल। अत: सभ जनपद कुरुसभद्वारा लाभान्वित होए के लोभसँ युद्धमे ओकरसभक सहायता करै के लेल तैयार भऽ गेल। पाण्डवसभ आ कौरवसभद्वारा यादवसभसँ सहायता माँगि पर श्रीकृष्ण पहिने तँ युद्धमे शस्त्र उठावेक प्रतिज्ञा के आ फेर कहलैन् कि "एक तरफ हम अकेला आ दोसर तरफ हमर एक अक्षौहिणी नारायणी सेना", अखन अर्जुन आ दुर्योधन के एहीमे सँ एक के चुनाव केनाए छल। अर्जुन तँ श्रीकृष्ण के ही चुनलक्, तखन श्रीकृष्ण अपन एक अक्षौहिणी सेना दुर्योधन के दऽ देलक आ स्वयम् अर्जुनक सारथि बनै के स्वीकार केलक। ई प्रकार कौरवसभ ११ अक्षौहिणी तथा पाण्डवसभ ७ अक्षौहिणी सेना एकत्रित करि लेलक। फेर श्रीकृष्ण कर्णसँ मिलि के ओकरा ई समझौलक् कि ओ पाण्डवसभक ही भाई छी अतः ओ पाण्डवसभक तरफसँ युद्ध करत, मुद्दा कर्ण दुर्योधन के ऋण आ मित्रता के कारण कौरवसभक साथ नै छोडलक्। एकर बाद कुन्ती के विन्ती करै पर कर्ण अर्जुन के छोडि ओकर शेष चार पुत्रसभक अवसर प्राप्त होए पर सेहो नै मारै के वचन देलक। दोसर दिशा, इन्द्र सेहो ब्राह्मणक भेष बना के कर्णसँ ओकर कवच आ कुण्डल लऽ लेलक। जाहिसँ कर्णक शक्ति कम भऽ गेल आ पाण्डवसभक उत्साह बढि गेल किया कि ओ अभेद्य कवच के कारण कर्ण के कोनो भी दिव्यास्त्रसँ मारि नै सकैत छल।
सेना विभाग एवम् संरचनासभ, हतियार आ युद्ध सामग्री
[सम्पादन करी]दुनु पक्षसभक सेनासभ [२३]
[सम्पादन करी]सेना विभाग
[सम्पादन करी]पाण्डवसभ आ कौरवसभ अपन सेना के क्रमशः ७ आ ११ विभाग अक्षौहिणी मे केलक। एक अक्षौहिणी मे २१, ८७० रथ, २१, ८७० हात्ती, ६५, ६१० सवार आ १,०९,३५० पैदल सैनिक होइत अछि।[२४][२५] ई प्राचीन भारत मे सेनाक मापदण्ड होएत छल। प्रत्येक रथमे चारि घोडा आ ओकर सारथि होएत अछि प्रत्येक हात्ती पर ओकर हात्तीवान बैसत अछि आ ओकर पाछा ओकर सहायक जे कुर्सी के पाछासँ हात्ती के अङ्कुश लगावैत अछि, कुर्सीमे ओकर मालिक धनुष-वाणसँ सज्जित होइत अछि आ ओकर साथ ओकर दुईटा साथी होइत अछि जे भाला फेकैत अछि तदनुसार जे लोग रथसभ आ हात्तीसभ पर सवार होइत अछि ओकर सङ्ख्या २, ८४, ३२३ होइत अछि एक अक्षौहिणी सेनामे समस्त जीवधारीसभ- हात्तीसभ, घोडासभ आ मनुष्यसभक कुल सङ्ख्या ६, ३४, २४३ होइत अछि, अतः १८ अक्षौहिणी सेनामे समस्त जीवधारीसभ- हात्तीसभ, घोडा आ मनुष्यसभक कुल सङ्ख्या १, १४, १६, ३७४ होएत। अठार अक्षौहिनीसभक लेल एही सङ्ख्या ११, ४१६ ,३७४ भऽ जाइत अछि अर्थात ३, ९३, ६६० हात्ती, २७, ५५, ६२० घोडासभ, ८२, ६७, ०९४ मनुष्य।[२६]
- महाभारत युद्धमे भाग लेए वाला कुल सेना निम्नलिखित अछि[२६]
- कुल पैदल सैनिक-१९, ६८, ३००
- कुल रथ सेना-३, ९३, ६६०
- कुल हात्ती सेना-३, ९३, ६६०
- कुल घुडसवार सेना-११, ८०, ९८०
- कुल न्यूनतम सेना-३९,०६,६००
- कुल अधिकतम सेना-१, १४, १६, ३७४
- ई सेना ओ समय के अनुसार देखि मे बहुत पैग लगैत अछि मुद्दा जखन ३२३ ईसा पूर्व यूनानी राजदूत मेगस्थनीज भारत आएल छल तँ ओ चन्द्रगुप्त जे ओ समय भारतक सम्राट् छल, के पास ३०,००० रथसभ, ९००० हात्तीसभ तथा ६,००,००० पैदल सैनिकसभसँ युक्त सेना देखलक्। अतः चन्द्रगुप्त की कुल सेना ओ समय ६, ३९, ००० के आस पास छल [२७][२८], जेकर कारण सिकन्दर भारत पर आक्रमण करवाक विचार छोडि देलक छल आ पुनः अपन देश फिर्ता भऽ गेल छल। ई सेना प्रामाणिक साधारणतः पर प्राचीन विश्व इतिहास के सभसँ विशाल सेना मानल जाइत अछि। ई तँ बस एक राज्य मगध के सेना छल, यदि समस्त भारतीय राज्यसभक सेनासभ देखी तँ सङ्ख्यामे एक बहुत विशाल सेना बनि जाएत। अतः महाभारत कालमे जखन भारत बहुत समृद्ध देश छल, एतेक विशाल सेनाक होनाए कोनो आश्चर्यक बात नै, जाहिमे की सम्पूर्ण भारत देश के साथ-साथ अनेक अन्य विदेशी जनपदसभ सेहो भाग लेनए छल।
हथियार आ युद्ध सामग्री
[सम्पादन करी]महाभारत के युद्धमे अनेकौं प्रकारक हथियार प्रयोगमे लावल गेल। प्रास, ऋष्टि, तोमर, लोहमय कणप, चक्र, मुद्गर, नाराच, फरसे, गोफन, भुशुण्डी, शतघ्नी, धनुष-बाण, गदा, भाला, तलवार, परिघ, भिन्दिपाल, शक्ति, मुसल, कम्पन, चाप, दिव्यास्त्र, एक साथ अनेकौं वाण छोडि वाला यान्त्रिक मशीनसभ।[२९]
-
प्राचीन कास्य युग के अस्त्र-शस्त्र
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कास्य युग के तलवार
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लखनऊ के दादुपुर गाममे उत्खननमे प्राप्त १८०० ईसा पूर्व के लोहा के वाणक भाग
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एक साथ अनेकौं वाण छोडि वाला यान्त्रिक मशीनसभ
सैन्य संरचनासभ
[सम्पादन करी]प्राचीन समयमे युद्ध के के समयमे सेनापति के सेना के अनेकौं व्यूह बनावे पडैत छल जाहिसँ के शत्रुक सेनामे आसानीसँ प्रवेश पावल जाऽ सके तथा राजा आ मुख्य सेनापतिसभक बन्दी बनाएल वा मारल जाऽ सके। एहीमे अपन सम्पूर्ण सेनाक व्यूह के नाम या गुण वाला एक विशेष आकृतिमे व्यवस्थित कएल जाइत अछि। ई प्रकारक व्यूह रचनासँ छोटसँ छोट सेना सेहो विशालकाय लगै लगैत अछि आ बडका सँ बडका सेनाक सामना करि सकैत अछि जेना की महाभारत के युद्धमे पाण्डवसभक केवल ७ अक्षौहिणी सेना कौरवसभक ११ अक्षौहिणी सेनाक सामना करि के ई सिद्ध करि देखेलक्। महाभारत के १८ दिन के युद्धमे दुनु पक्ष के सेनापतिसभद्वारा अनेकौं प्रकार के व्यूह बनाएल गेल। जे निम्नलिखित अछि-
- क्रोन्च व्यूहमकर व्यूहकूर्म व्यूहत्रिशूल व्यूहचक्र व्यूहकमल व्यूहओर्मी व्यूहवज्र व्यूहमण्डल व्यूहगरुड व्यूहशकट व्यूहअसुर व्यूहदेव व्यूहसूचि व्यूहचन्द्रकाल व्यूहशृंगघटक व्यूह
-
चक्रव्यूह के गठनक चित्रण
-
प्राचीन शिलाचित्र जाहिमे अभिमन्यु चक्र व्यूहमे प्रवेश करैत देखाएल गेल अछि
महाभारत कालक सभसँ शक्तिशाली योद्धा[३०]
[सम्पादन करी]सन्दर्भ सामग्रीसभ
[सम्पादन करी]- ↑ १.० १.१ महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,सौप्तिकपर्व
- ↑ २.० २.१ महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,भीष्मपर्व
- ↑ महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,आदिपर्व, प्रथम अध्याय
- ↑ दिल्ली सिटी द इमपेरिकल गजेटटियर ऑफ इण्डिया,१९०९, भाग ११, पेज २३६
- ↑ आरकेलोजी ऑनलाइन, साइन्टिफिक वेरिफिकेशन ऑफ वैदिक नोलेज, कुरुक्षेत्र
- ↑ आई एस डॉट कॉम, आरटिकल २९
- ↑ आरकेलोजी ऑनलाइन, साइन्टिफिक वेरिफिकेशन ऑफ वैदिक नोलेज, ऐविडेन्स फार ऐन्शियन्ट पोर्ट सिटी ऑफ द्वारका
- ↑ लाक्षागृह
- ↑ महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर
- ↑ महाभारत गीताप्रेस गोरखपुर, भीष्म पर्व-४६.१
- ↑ "Experts dig up 950BC as epic war date"।
- ↑ ए.डी. पुशलकर, पृष्ठ.272
- ↑ एज अफ भारत वार , जी सी अग्रवाल आ के एल वर्मा, पृष्ठ-81
- ↑ गुप्ता आ रामचन्द्रण (१९७६), p.55; ए.डी. पुशलकर, HCIP, भाग I, पृष्ठ.272
- ↑ ए.डी. पुशलकर, हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ इण्डियन पीपुल, भाग I, अध्याय XIV, पृष्ठ.273
- ↑ एम विटजल, अरली सन्स्क्रिटाइजेशन: आरिजन एण्ड डेवलेपमेन्ट ऑफ कुरु स्टेट, इ जे वी एस भाग.1 न.4 (1995
- ↑ १७.० १७.१ १७.२ डेटिंग ऑफ महाभारत वार
- ↑ "धर्मक्षेत्र.कॉम/महाभारत"। मूलसँ 2010-04-20 कऽ सङ्ग्रहित। अन्तिम पहुँच 2018-02-13।
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suggested) (help) - ↑ १९.० १९.१ हिन्दुनेट-भारत इतिहास
- ↑ एज ऑफ महाभारत वार
- ↑ महाभारत,उद्योगपर्व गीताप्रेस गोरखपुर
- ↑ गीता प्रेस गोरखपुर, महाभारत
- ↑ महाभारत,भीष्मपर्व, अध्याय १-४० मे देल गेल जनपदसभक वर्णन तथा ई जनपदसभक कौरव एवम् पाण्डव पक्षसँ लडै के आधार पर बनाएल गेल सूची
- ↑ वी के एस ब्लागl कृष्ण की मृत्यु और कलियुग की प्रारम्भ। मेरी कलम से- कृष्णा वीरेन्द्र न्यास
- ↑ भारतीय साहित्य संग्रह[permanent dead link]
- ↑ २६.० २६.१ महाभारत की सेना
- ↑ चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना
- ↑ द पर्सनल जनरल स्टडी मैनुएल, हिस्ट्री ऑफ इण्डिया
- ↑ महाभारत-भीष्मपर्व, श्लोक-११९.२-३ गीता प्रेस गोरखपुर
- ↑ गीता प्रेस गोरखपुर , महाभारत-ई श्रेणीसभ महाभारत के भीष्म पर्व के रथातिरथसंख्यानपर्वमे भीष्म जी द्वारा ई पात्रसभक युद्ध कौशल, युद्धमे कमसँ कम हार, अधिकसँ अधिक शक्तिशाली दिव्यास्त्रसभक सङ्ख्या आदि के आधार पर देल गेल अछि। ई श्रेणीसभ एही लेल देल गेल अछि जाहिसँ कि पाठक महाभारत काल के सभसँ शक्तिशाली योद्धासभक बारेमे बुझि सके।